काव्या की सहेलियांँ # लेखनी दैनिक कहानी प्रतियोगिता -01-Aug-2022
काव्या की सहेलियां (#प्यारे दोस्त)
यह कहानी एक मध्यम परिवार की बदसूरत लड़की काव्या की है जो अपनी सहेलियों की नजरों में सबसे खूबसूरत है।उसकी चारों सहेलियों के कारण उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ अपनी बदसूरती का। किरण, मिली, सरबजीत और सपना ये चारों उसके जीवन में चार दिशाओं का काम करती है।
गली में कोई बच्चा उसके साथ खेलना नहीं चाहता था।
सब उसे काली माई कहकर चिढा़ते। याद करती है काव्या आज भी जब उन दिनों को किस तरह उसका बाल मन विचलित हो जाता था जब लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखते थे, आँसू आज भी झलक उठते हैं उसकी आँखों से।
एक दिन वो अपनी गुडिया लिए गली में खेल रही लड़कियों के झुंड में शामिल हो जाती है जैसे ही सबकी नजर उसके काले हाथों में पकडी़ सुन्दर गुडिया पर जाती है। एक लड़की उसके हाथों से गुड़िया छीन लेती है और दूसरी लड़की उसे धक्का दे देती। सब हंसने लगती हैं इतनी सुंदर गुडिया इस काली कलूटी के पास रहकर काली हो जाएगी।
काव्या के सर में चोट लग गई थी और सर से खून भी बह रहा था। उसको अपनी गुडिया जो उसकी मम्मी ने उसके लिए बनाई थी उसे बहुत पसंद थी। वो रो रही थी मेरी गुड़िया मुझे दे दो, अब मैं कभी नहीं आऊंगी तुम्हारे साथ खेलने। तभी किरण आवाज सुनकर बाहर आती है जिसे छोटी सी उम्र में घर के काम करने पड़ते हैं और अपने दोनों छोटे भाई बहनों की भी देखरेख करनी पड़ती क्योंकि उसकी मम्मी फैक्टरी में काम करने जाती थी सारा दिन उसे ही घर संभालना पड़ता था। उसकी उम्र की सारी लड़कियां खेलती और वो घर का काम करती।
किरण अपनी गली में सबसे सुंदर थी रंग एकदम गोरा, नैन नक्श भी बहुत सुंदर थे। वो दौड़कर काव्या को उठाती है। अपने दुप्पटे से उसके सर का खून साफ करती है सबको डाँटती है आज के बाद किसी ने इस लड़की पर हाथ उठाया तो उसका हाथ तोड़ दूंगी। काव्या को अपने घर ले आती है हल्दी वाला दूध देती है पीने के लिए। उस दिन के बाद से वो दोनों पक्की सहेली बन जाती है। अब रोज काव्या किरण के साथ स्कूल जाती है दोनों एक ही स्कूल में पढती है। दोनों की दोस्ती की चर्चा पूरी कॉलोनी में फैल जाती है। किरण काव्या से करीब चार साल बड़ी थी उसकी शादी छोटी उम्र में ही करवा दी उसके माता पिता ने।
किरण के साथ साथ उसकी दो और सहेली सपना और सरबजीत भी थी। सरबजीत उसकी ही क्लास में पढ़ती थी। और पड़ोस में ही रहती थी। स्कूल की पढाई के कारण अकसर एक दूसरे के घर आना जाना होता था।
सपना उससे एक साल छोटी पर उससे ज्यादा समझदार थी। काव्या जब भी उसके घर जाती खेलने के लिए तो कुछ नया सीख कर ही लौटती थी। किरण और सपना साथ वाले स्कूल में पढ़ते थे। सब साथ खेलती और पढ़ती। उनके साथ रहकर वो भी अपनी असलियत भूल जाती थी।
अपने स्वभाव से अपनी सहेलियों के मन में बस गई थी काव्या। किरण की शादी के समय वो नवमी कक्षा में थी और उसी साल सपना के माता पिता ने भी अपना घर जो कि काव्या के घर से काफी दूर था।
दोनों सहेलियों के जाने के बाद काव्या को उनकी कमी बहुत खलती। सरबजीत के साथ पढ़ती और स्कूल तो जाती पर अब खेलना बंद हो गया था। पढा़ई का बोझ भी बढ़ रहा था। जब ग्यारहवीं कक्षा की मैथ की टयुशन में उसकी मुलाकात मिली से हुई जो हूबहू उर्मीला मांडोटकर की कॉपी थी बहुत ही सुंदर। पर स्वभाव दोनों का एक जैसा। दोनों की दोस्ती उम्र के ऐसे समय हुई थी जो बचपने की दहलीज पार कर किशोरावस्था फिर कॉलेज के दिन। सरकारी नौकरी के लिए संघर्ष दोनों ने सारी प्रतियोगी परीक्षाऐं साथ दी। काव्या पी जी के फाइनल परिक्षाओं की तैयारी कर ही रही थी कि उसी समय उसकी शादी हो गई। साल भर बाद पता चला मिली आगे पढ़ने के लिए विदेश गई है। काव्या और मिली अपने सारे राज एक दूसरे को बताते थे। काव्या जानती थी सब पर दोस्ती की ख़ातिर किसी को कभी नहीं बताया। मिली के घरवाले जब नहीं माने तो उसने घर छोड़ दिया था उसके लिए जिससे वो प्यार करती थी।
काव्या कई सालो बाद फेसबुक से जुड़ने के बाद अपनी चारों पुरानी सहेलियों के संपर्क में आ जाती है। उनकी दोस्ती में कभी कोई कमी नहीं आई। चारों ने उसे उम्र के चौथे दशक में पहुँचने पर भी उसके वो गुण जिससे वो अंजान थी पहचान करवाई और लिखने के लिए प्रेरित किया।
आज दोस्ती विषय पर लिखते वक्त काव्या ने पहले कई काल्पनिक कहानियां रची पर उसे कुछ जच ही नहीं रही थी। फिर अपनी सहेली सपना को फोन लगाया उसने किसी कारण से नहीं उठाया तो मिली को फोन लगाया जिसने तुरंत फोन उठाकर अपनी चहकती हुई आवाज में काव्या कि हालमें लिखी कहानियों के बारे में बताया कि इतना टैलेंट अब तक छुपा कर रखा था। यह उसकी और सहेलियों की दोस्ती ही तो थी जिसने उसे अपने अंदर छिपे लेखक की पहचान करवाई। याद है जब पहली बार लिखा था तो सरबजीत ने जो पंक्तियां लिखी थी.. बहुत प्रसिद्ध लेखक बहुत अच्छा लिखती है इनकी कविता कहानी जरूर पढिएगा... वैल नोन ओथरेस...काव्या को यकीन ही नहीं हो रहा था।
अब पाँचों मिल तो नहीं पाती हैं पर फोन पर अकसर बात करती हैं।
काव्या की सहेली किरण तो हमेशा फोन करके बस हाल चाल पूछते ही कहानी सुनाने की जिद्द करेगी । कुछ नया लिखा है तो जल्दी सुना।
आज काव्या सोच रही है कि अगर मेरी यह सहेलियां और उनकी दोस्ती नहीं होती तो शायद आज जो मैं हूँ वो ना होती।
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कविता झा'काव्या कवि'
स्वरचित
(अपने दोस्तों के नाम.. बहुत किस्मत वाली हूँ जो ऐसी दोस्तों का साथ है)
#लेखनी
##लेखनी दैनिक कहानी प्रतियोगिता
#कहानियों का सफर
01.08.2022
Milind salve
02-Aug-2022 08:51 AM
बहुत खूब
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shweta soni
01-Aug-2022 10:58 PM
Behtarin rachana 👌
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Raziya bano
01-Aug-2022 10:17 PM
Bahut sundar rachna
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